शिव पुराण
शिव पुराण
शिव पुराण भगवान सदाशिव का प्रकट होना नवाँ अध्याय शिव शक्ति द्वारा भूत आदि सृष्टि की उत्पत्ति दसवाँ अध्याय शिव पुराण कथा शिव पुराण की कहानी शिवपुराण’ एक प्रमुख तथा सुप्रसिद्ध पुराण है, जिसमें परात्मपर परब्रह्म परमेश्वर के ‘शिव’ (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा एवं उपासना का सुविस्तृत वर्णन है। भगवान शिवमात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं।
शिव पुराण
भगवान सदाशिव का प्रकट होना नवाँ अध्याय
- ब्रह्मा जी बोले " हे नारद ! भगवान् सदाशिव की आज्ञा पाकर विष्णु भी कल देर पश्चात अन्तर्धान हो गये और उन्होंने सम्पूर्ण लोक को ब्रह्माण्ड से पृथकका दिया । अस्तु उन्ही सदाशिव की कृपा से शक्ति को प्राप्त कर , मैंने ब्रह्माण्ड अर्थात् सबों तम सृष्टि को उत्पन्न किया । अब में तुम से जीवों की उत्पत्ति का वर्णन करता हूँ कि वे प्रकृति और पुरुष द्वारा किस प्रकार उत्पन्न होते हैं । जब भगवान् सदाशिव तथा उनकी परमशक्ति प्रकृति ने इच्छा की तो उनकी इच्छा द्वारा सर्वप्रथम बद्धि की उत्पत्ति हुई । उस महत्तत्व से अहंकार एवं अहंकार से सतोगुण , रजोगुण तथा तमो गुण की उत्पत्ति हुई । इन तीन गुणों द्वारा पृथ्वी एवं आकाश उत्पन्न हुए । इसी प्रकार क्रमानुसार देवता , मनुष्य आदि योनियों की उत्पत्ति हुई । फिर मैंने भगवान सदाशिव के चरणों का ध्यान धर कर सर्वप्रथम सनक , सनन्दन , सनातन , सन कुमार एवं ऋभ - इन पाँच मनुष्यों को उत्पन्न किया । ये सब भगवान् सदाशिव का ध्यान धरने के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानते थे । इन्होंने मुझ से यह कहा कि हम लोग सृष्टि उत्पन्न करने का काम नहीं करेंगे । इस अवज्ञा को देखकर मुझे उनके ऊपर बहुत क्रोध आया , परन्तु विष्णुजी के समझाने पर मैंने उस क्रोध को शान्त कर लिया । तत्पश्चात् मेंने परिश्रमपूर्वक बहुत समय तक तपस्या की , परन्तु जब उस तपस्या का कोई फल न निकला तो मुझे अपने मन में बहुत , आचर्य हुआ । उस समय में भगवान सदाशिव की माया से ऐसा भयभीत हुआ कि मेरे नेत्रों से आँसुओं की बूदें टपकने लगीं । उस समय भगवान सदाशिव ने दयालु होकर मुझे सद्बुद्धि प्रदान की , जिससे मेरे हृदय में यह इच्छा उत्पन्न हुई कि यदि भगवान् त्रिशूलपाणि ही मेरे पुत्र होकर जन्म लें तो सम्पूर्ण कार्य स्वयं ही सिद्ध हो जायेंगे । इस बात को मन में रखकर में फिर बहुत समय तक योगसमाधि में लीन हो गया । मेरी उस तपस्या से भगवान सदाशिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और सृष्टि की वृद्धि करने के लिए उन्होंने मेरी भौंह के निचले भाग से अवतार ग्रहण किया । उन्होंने अपने उस अवतारी शरीर में वे चिन्ह प्रगट कर दिये , जिन्हें मैंने सर्व प्रथम विष्णु जी के साथ , उनका दर्शन प्राप्त करते समय देखा था । इस प्रकार उन्होंने मेरी सहायता करने के हेतु अवतार ग्रहण किया ।
शिव पुराण दसवाँ अध्याय
शिव शक्ति द्वारा भूत आदि सृष्टि की उत्पत्ति
- ब्रह्माजी बोले - “ हे नारद ! भगवान् सदाशिव इस रूप में प्रकट होकर मुझ से कहने लगे - “ हे ब्रह्मन् ! यदि आप हमें आज्ञा दें तो हम वेदानुकूल कार्य करें । " में ऐसे सुपुत्र को पाकर अपने मन में फूला नहीं समा रहा था । अस्तु , मेंने उनसे कहा - " जब तुम जैसे मेरे पुत्र उत्पन्न हुए हैं , तो मेरे सम्पूर्ण मनोरथ निश्चय ही पूर्ण हो जावेंगे । मैं वेद के अनुसार तुम्हारे जो ग्यारह नाम हैं उन्हें बताता हूँ — मन्युमनु , महर्निप , महान , शिव , कृतुध्वज , उग्ररता , भव , काल , वामदेव तथा धृतव्रत । तुम्हारी ग्यारह रुद्राणियों के नाम इस प्रकार होंगे - धी , वृत्ति , उशना , उमा , नियत्सर , इला , अम्बिका , इरावती , सुधा , दीक्षा तथा रुद्राणी । इसके अतिरिक्त रुद्र , महेश्वर , हर तथा जगदीश आदि तुम्हारे अनेक नाम और भी होंगे । पृथ्वी , जल , अग्नि , आकाश और वायु - ये पांचो तत्त्व तथा सूर्य , चन्द्रमा , जीव और हृदय ये योगस्थान तुम्हारे निवासस्थान होंगे । तुम अपनी पत्नियों को भी इन्हीं स्थानों में अपने साथ रखो और सन्तान की उत्पत्ति करो , जिससे सृष्टि की वृद्धि हो । हे नारद ! मेरी बात सुनकर उन सगुणस्वरूप शिवजी ने भूत , प्रेत , पिशाच , आदि सहस्रों प्रकार के भयानक जीव उत्पन्न किये , जिन्हें देखकर मुझे अत्यन्त आश्चर्य हुआ । तब मैंने भयभीत होकर उनसे कहा - " तुम इस सन्तान को इसी समय नष्ट कर दो तथा श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न करो । " यह सुनकर उन्होंने उत्तर दिया ' हे ब्रह्मन् ! जिन जीवों को बार - बार जन्म लेना और मरना पड़े , उन्हें हम उत्पन्न नहीं करेंगे उन्हें तो आप ही उत्पन्न कीजिये । आप हमें भूलियेगा नहीं । यह कह कर शिवजीने अपनी मायाको मेरे ऊपरसे हटा लिया । उस समय मैंने चैतन्य होकर अपना मस्तक दण्डवत् करने के हेतु उनके चरणों में झुका दिया । यह देखकर शिवजी ने मुझे ऊपर उठाते हुए , मेरे मस्तक पर अपना हाथ फेरा । उस समय सनकादिक भी आकर शिवजी के चरणों में गिर पड़े और उन्हें दण्डवत् करते हुए , स्तुति करने लगे । भगवान सदाशिव ने सब पर दयालु होकर उन्हें उत्तम बुद्धि प्रदान की । तदुपरान्त वे मेरेललाट के मार्ग से गुप्त होकर अपने लोक को चले गये । हे नारद ! हम तीनों देवताओं में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है । अब में तुम से सृष्टि का वर्णन पुनः करता हूँ ।
अध्याय समाप्त
शिव पुराण
शिव पुराण भगवान सदाशिव का प्रकट होना नवाँ अध्याय शिव शक्ति द्वारा भूत आदि सृष्टि की उत्पत्ति दसवाँ अध्याय शिव पुराण कथा शिव पुराण की कहानी शिवपुराण’ एक प्रमुख तथा सुप्रसिद्ध पुराण है, जिसमें परात्मपर परब्रह्म परमेश्वर के ‘शिव’ (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा एवं उपासना का सुविस्तृत वर्णन है। भगवान शिवमात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं।
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