google.com, pub-7729807779463323, DIRECT, f08c47fec0942fa0 google.com, pub-7729807779463323, DIRECT, f08c47fec0942fa0 शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव - दर्शन की प्राप्ति आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श - Selling Settlement
Thursday, May 22.

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  • शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव - दर्शन की प्राप्ति आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श

    शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव -  दर्शन की प्राप्ति  आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श


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    शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव -  दर्शन की प्राप्ति

    Link लिंक ओपन करें भगवान सदाशिव द्वारा विष्णु और ब्रह्मा की उत्पत्ति का वर्णन पढ़ें

     ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव -  दर्शन की प्राप्ति 

    शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव -  दर्शन की प्राप्ति  आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श


    • ब्रह्माजी ने कहा - "हे नारद! इस प्रकार निर्विकार एवं निराकार परब्रह्म की बहुत प्रकार से स्तुति करने के उपरान्त हमने उन्हें प्रार्थना की हे प्रभो! आप हमारे सामने अपना स्वरूप प्रकट करें।" मेरी और विष्णुजी की यह प्रार्थना है।  सुनकर, भगवान सदाशिव अपनी परमशक्तिसहित उसी क्षण प्रकट हो गए। उनके शरीर श्वेत पत्थर के समान गौरव था। वे उस पर भस्म मले हुए थे।  वामांग में आदिशक्ति महामाया उत्तमोत्तम वस्त्रालंकारों को धारण किये हुए विराजमान थे। इस प्रकार जब उन्होंने अपना दर्शन दिया तो उनके स्वरूप को देखकर हम दोनों को इतना अधिक आनन्द हआ कि उस प्रसन्नता में हमारे नेत्रों में आँसू बह निकले और वाणी गदगद हो गयी।  लिंग पश्चाताप जब हमें चैतन्यता प्राप्त हुआ, तो हम हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करते हुए बोले हे प्रभो! हमारा या पारस्परिक  विवाद शुभ ही हुआ  जो हमें आप परमप्रभु के दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। निश्चय ही हमारे शुभ कर्मों का उदय हुआ है जो हम आपको देखकर लोक परलोक का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हे प्रभो। हम से जो कुछ अपराध हुआ, उसे आप।  कृपापूर्वक क्षमा करें।  हम दोनों ने।  भगवान् सदाशिव को अपना स्वामी स्वीकार किया और बहुतन्त नम्रतापूर्वक।  अपने हाथ जोड़ते हुए उनकी महान महिमा का वर्णन किया।  तत्पश्चात हम अपने मस्तक को नीचे झुकाए हुए उनके चरणारविन्दो की ओर देखने लगे। 





    आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श




    • ब्रह्माजी ने कहा - “ हे नारद ! मेरे तथा विष्णु द्वारा की गई स्तुति को सुनकर भगवान् सदाशिव ने मुसकराते हुये इस प्रकार कहा - हे . ब्रह्मन् तथा हे विष्णो ! तुमने हमारी माया के मोह में पड़कर परस्पर युद्ध किया और अन्त में हमने तुम दोनों को अपना भक्त जानकर , अपना लिंग स्वरूप प्रकट किया , जिसे तुम दोनों में कोई नहीं पहिचान सका । अब तुम्हें यह उचित है कि पारस्परिक विरोध भाव को त्यागकर , तुम दोनों ही अहंकार को नष्ट कर दो और वह कार्य करो , जिसकी हम तुम्हें आज्ञा देते हैं । 
    • हे नारद ! इतना कह कर भगवान् सदाशिव ने श्वास के मार्ग द्वारा मुझे सम्पूर्ण वेद पढ़ा दिये । तदुपरान्त वे पाँच मन्त्र भी बताये , जिनमें संपूर्ण विद्याएँ अन्तर्निहित हैं । उन्होंने सर्व प्रथम प्रणव की शिक्षा दी , जिसके अक्षर वेद कह लाते हैं । शिवजी का सर्व प्रथम वाक्य वही है । तदुपरान्त उन्होंने चौबीस अक्षरों से युक्त वेदों की माता गायत्री का उपदेश दिया । फिर महामृत्युन्जय मन्त्र की शिक्षा देने के उपरान्त उस चिन्तामणि मन्त्र को सिखाया , जो भक्तों को महान सुख देता है । उस वेद तथा मन्त्रों को पढ़कर हमें अत्यन्त प्रसन्नता प्राप्त हुई । उस समय में तथा विष्णुजी कृतज्ञता भरी दृष्टि से उन महेश्वर भगवान् की ओर देखने लगे और दर्शन के उस आनन्द में आचूड़ निमग्न होगये । उन परमप्रभु के दर्शन । से हमें जो सुख प्राप्त हुआ , उसका वर्णन किसी भी प्रकार नहीं किया जा सकता । हमारे इस अनन्य प्रेम को देखकर भगवान् महेश्वर को भी बहुत प्रसन्नता हुई । तब उन्होंने मुझसे यह कहा - हे ब्रह्मा ! तुम धन्य हो , जो तुम्हें मेरी कृपासे सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । अब तुम मेरी आज्ञा स्वीकार कर , सृष्टि करो । " मुझसे यह कह कर फिर वे विष्णु की ओर देखते हुए बोले - ह विष्णु ! तुम सृष्टि का पालन करने के अधिकारी हो । तुम हमें वेद का स्वरूप जाना और वेद में जो कुछ लिखा है , उसे हमारी आज्ञा मानकर स्वीकार करो । ।
    • हे नारद ! भगवान त्रिशूलपाणि की आज्ञा सुनकर हम दोनों ने उनसे प्रार्थना करते हुए कहा - हे प्रभो ! हमें आपकी आज्ञा स्वीकार है । परन्तु हम यह चाहते हैं किआप स्वयं भी कोई अवतार ग्रहण कर , हमारी सहायता करते रहें । तीनों लोकों का पालन करने के पश्चात् अंत अर्थात् प्रलय का अधिकार आप अपने पास रक्खें । हमारा यही मनोरथ है । " इतना कह कर हम दोनों मौन हो गये । तदुपरांत उनकी मौन स्वीकृति पाकर हमने यह बात कही - हे प्रभो ! अब आप सर्वप्रथम हमें यह बताइए कि हम किस रीति के अनुसार आपका पूजन करें ? यह सुनकर भगवान भूतभावन ने उत्तर दिया - “ हे ब्रह्मा तथा विष्णु ! हमें संसार में तुम से अधिक प्रिय अन्य कोई न होगा । अब तुम दोनों सम्पूर्ण चिन्ता तथा शोक को त्याग कर , सुखपूर्वक अपना कार्य करो तथा उस कार्य द्वारा अन्य लोगों को भी सुख पहुँचाओ । हमने तुम्हें कुछ देर पूर्व जो अपना लिंग स्वरूप दिखाया था , उसका पूजन करना सर्वथा योग्य है । उसी के पूजन से सुख की प्राप्ति होगी । उस लिंग की उत्पत्ति का भेद यह है कि सम्पूर्ण संसार जिस क्षेत्र में लीन हआ है , उसीको लिंग कहते हैं । अस्तु , ऐसे लिंग के पूजन से इस लोक तथा पर लोकमें सुख प्राप्त होता है । लिंग के पूजन की महिमा अनंत है । तुमने जोहमसे | अवतार ग्रहण करने की प्रार्थना की है , उसके सम्बन्ध में यह जान लो कि समय आने पर हम स्वयं ही प्रकट होकर आवेंगे । हमारे उस अवतार का नाम रुद्र ।होगा । हम चारो अर्थात् ब्रह्मा , विष्णु , शिव , और शक्ति एकही स्वरूप हैं । जो । व्यक्ति हम में किसी प्रकार का भेद समझेगा , उसे बहुत दुःख उठाना पड़ेगा ।
    • इतना कह कर भगवान् सदाशिव ने एक बड़े गुप्त भेद को प्रकट करते हुए । मुझसे कहा - " यह भेद वेद में भी अधिक गुप्त है अर्थात् हम सगुण रूप में शिव और शक्ति दो नामों से प्रकट होते हैं तथा तीनों गुणों द्वारा ब्रह्मा , विष्णु एवं शिव नामक देवताओं के रूप में अलग अलग प्रकट होते हैं । किसी कल्प में पहिले विष्णु , फिर ब्रह्मा तदुपरान्त रुद्र की उत्पत्ति होती है तो किसी कल्प में पहिले शिव , फिर विष्णु और तत्पश्चात् ब्रह्मा की उत्पत्ति होती है । इस प्रकार तुम दोनों शक्तिके चिन्ह से रजोगुण एवं सतोगुण को ग्रहण करते हो । हर अर्थात् महादेव हमारे ही अंश से उत्पन्न होकर , हमारे ही तमोगुणी स्वरूप हैं । उनके आधीन प्रलय कार्य रहता है । अस्तु , जिस प्रकार हम तमोगुणी रुद्र का स्वरूप धारण कर प्रकट होंगे , वह सब हमने तुम्हें बता दिया । तुम दोनों श्याम एवं लाल वर्णका स्वरूप धारण किये हए हो , अतः हम श्वेत रूप धारण करेंगे । तुम दोनों पर तमोगुण का प्रभाव न होगा , परन्तु हमारे रुद्रस्वरूप की यह स्थिति होगी कि वह तमोगुण से संयुक्त होने पर भी दिन रात पवित्र योग में निमग्न रहेगा ।
    • हे नारद ! मझे यह आज्ञा देकर भगवान सदाशिव ने विष्णुजी की ओर देखते हुए यह कहा हे विष्णु ! तुम सम्पूर्ण जीवों का भली प्रकार पालन करना । हमारे दाहिने ओर से ब्रह्मा , बाएँ ओर से विष्णु तथा हृदय से रुद्र की उत्पत्ति होगी । हमारी शक्ति जो उमा हैं - वह भी दो अंशां में प्रकट होंगी , जिससे तुम अलग - अलग नहीं समझे जाओगे । पहिले अंश से वे लक्ष्मीस्वरूपा होकर तुम्हें प्राप्त होंगी और दूसरे अंश से सरा होकर ब्रह्मा को प्राप्त होंगी । उनके उमा स्वरूप को हर स्वीकार करेंगे । उस समय संसार में उनका नाम सती प्रसिद्ध होगा । इस प्रकार ब्रह्मा , विष्णु तथा हर - यह तीनों देवता अपनी शक्तियों के साथ रह कर वेद का पूजन करेंगे । अस्तु , तुम दोनों को उचित है कि तुम हमारी इस आज्ञा का अनुसरण करो । ब्रह्मा का एक दिन सहस्र चतुर्युगी का होगा , इस प्रकार की एक सौ वर्ष की आयु ब्रह्मा की होगी । ब्रह्मा की सम्पूर्ण आयु का समय विष्णु के आधेदिन के बराबर होगा और विष्णु की सम्पूर्ण आयु का समय हर का एक दिन होगा । ऐसा एक दिन व्यतीत हो जाने पर हमारा सगुण स्वरूप निर्गुण होकर प्रलय कर दिया करेगा ।

    • इतना कह कर भगवान् सदाशिव ने हम दोनों के मस्तक पर अपने दोनों हाथ रक्खे । इस प्रकार उपदेश तथा शिक्षा देकर जब भगवान शिव अन्तर्धान हो गए तब हम दोनों शोक से व्याकुल हो हाथ जोड़कर शिव शिव कहते हुए  जिस ओर वे गुप्त हुए थे उसी ओर मुंह किए बारंबार दंडवत करते रहे।
    शिव पुराण सातवां अध्याय ब्रह्मा एवं विष्णु को शिव -  दर्शन की प्राप्ति  आठवां अध्याय शिवजी द्वारा ब्रह्मा तथा विष्णु का स्पर्श...
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